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बांस एक कठिन परिश्रम का उदाहरण हैं जो कभी हार नही मानता

समय और परिस्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं होती है। हर व्यक्ति के जीवन में उतार-चढ़ाव निश्चित ही आते हैं। कभी खुशी कभी गम। जीवन सुख-दुःख का आना-जाना लगा रहता है। कभी अच्छा समय तो कभी बुरे से भी बुरे दौर से उसे गुजरना पड़ता है। परिस्थिति और समय स्थाई नहीं हैं निरंतर गतिमान है। प्रतिकूल परिस्थितियों में सकारात्मक सोच धैर्य और साहस के साथ संयम रखने वाला व्यक्ति ही जीवन को सफल और सार्थक बनाता है। और जो व्यक्ति ऐसे समय में स्वयं को नहीं संभाल पाता उसे विफलता ही हाथ लगती है।

कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति के अंदर सबसे पहले घबराहट उत्पन्न होती है और उस घबराहट में उसे अजीबो गरीब ख्याल आते हैं। उसकी उम्मीदें कमजोर पड़ती जाती है। धैर्य जवाब देने लगता है। साहस टूटने लगता है। इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है ऐसे समय में संयम को बनाए रखना। संयम से हीं कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। जिस व्यक्ति के पास संयम नहीं, वह छोटी से छोटी समस्याओं का सामना भी सही तरीके से नहीं कर पाता है। जीवन में विवेकपूर्ण निर्णय लेना है। सारी समस्याओं व कठिनाइयों को हराकर विजेता बनना है। अपने व्यक्तित्व को निखारना है। जीवन की इस कठिन परीक्षा में पास होना है तो धैर्य और साहस के साथ संयम बनाये रखना बहुत आवश्यक है।

एक समय की बात है जब एक व्यवसायी का व्यापार पूरी तरह चौपट हो गया था। वह पूरी तरह हताश होकर खेतों की ओर चला गया। काफी देर अकेला खेतों में बैठा रहा। कुछ देर बाद वहां खेत का मालिक (किसान) आया। किसान ने व्यवसायी से पूछा आप यहां क्यों बैठे हैं? कौन हैं आप? व्यवसायी ने अपना परिचय देने के बाद बोला मेरा व्यवसाय पूरी तरह चौपट हो गया। मेरा सब कुछ खत्म हो चुका है। मैं हार चुका हूं, मैं निराश-हताश हूँ। आप ही बताइए मैं क्यों ना हताश होऊं?

किसान ने जवाब दिया तुम खेतों में इस घास और बांस के पेड़ को देखो, जब मैंने घास और बांस के बीज को लगाया, मैंने दोनों की देखभाल की। बराबर पानी दिया बराबर मेहनत किया। घास बहुत जल्दी बड़ी होने लगी और इसने धरती को हरा-भरा कर दिया, लेकिन बांस का बीज धरती के अंदर से निकला भी नहीं। लेकिन मैंने बांस के लिए अपनी हिम्मत नहीं हारी।

किसान ने बोलना जारी रखा। दूसरे साल, घास और घनी हो गई। उस पर झाड़ियां आने लगीं। किन्तु बांस के बीज में कोई विकास नहीं हुआ। फिर भी मैंने बांस के बीज के लिए हिम्मत नहीं हारी। तीसरे साल भी बांस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई, लेकिन मैंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी। चौथे साल भी कोई विकास नहीं हुआ लेकिन मैं लगा रहा।

किसान ने कहा पांच साल बाद उस बांस के बीज से एक छोटा-सा पौधा अंकुरित हुआ। घास की तुलना में यह बहुत छोटा और कमजोर था। लेकिन केवल 6 महीने बाद यह छोटा-सा पौधा 100 फीट लंबा हो गया। मैंने बांस की जड़ को इतना बड़ा करने के लिए पांच साल का समय लगाया। इन पांच सालों में इसकी जड़ इतनी मजबूत हो गई कि 100 फिट से ऊंचे बांस को संभाल सके।

किसान ने व्यवसायी से कहा कि आपके जीवन में भी जो कठनाई आईं हैं वो आपके व्यक्तित्व को निखारने, आपकी जड़ों को मजबूती देने आई हैं। ताकि आप बड़े कार्य करने के लिए अधिक क्षमतावान बन सकें। इसलिए संघर्ष के समय में धैर्य और साहस के साथ संयम बनाकर अपने कार्यक्षेत्र में परिश्रम रूप पानी निरंतर सींचते रहें। सार्थक परिणाम जरूर मिलेंगे। हमेशा याद रखें कि जब भी जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ रहा है तो समझ लीजिए कि जड़े मजबूत हो रही है। इसलिए कभी हार न मानें।

Source : सत्यम सिंह बघेल

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